ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
शिव हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वह सर्वोच्च प्राणी है, जो ब्रह्मांड की रचना, रक्षा और परिवर्तन करता है। यह माना जाता है कि भगवान शिव आसानी से प्रसन्न हो सकते हैं और अपने भक्तों को वरदान देते हैं।
भगवान शिव के पूजन में मंत्रों के जाप का काफी महत्व है. अगर कोई भी मनुष्य सच्चे मन से इन मंत्रों का जाप करे तो उसकी सारी समस्याओं का हल उसे मिल जाएगा…शिवपूजन में कई तरह के मंत्रों का जाप किया जाता है और कार्यसिद्धि के लिए इन मंत्रों की संख्या भी अलग होती है लेकिन शिव शंभू को उनका एक मंत्र बहुत प्रिय है.
महामृत्युंजय मंत्र एक ऐसा मंत्र है जिसका जप करने से मनुष्य मौत पर भी विजय प्राप्त कर सकता है. शास्त्रों में अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग संख्याओं में मंत्र के जप का विधान है.
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ
त्रयंबकम- त्रि.नेत्रों वाला ;कर्मकारक।
यजामहे- हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्देय।
सुगंधिम- मीठी महक वाला, सुगंधित।
पुष्टि- एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम- वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है।
उर्वारुक- ककड़ी।
इवत्र- जैसे, इस तरह।
बंधनात्र- वास्तव में समाप्ति से अधिक लंबी है।
मृत्यु- मृत्यु से
मुक्षिया, हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मात्र न
अमृतात- अमरता, मोक्ष।
आइए जानें, किस समस्या में इस मंत्र का कितने बार करें जाप…
पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए, अकाल मृत्यु से बचने के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है.
यदि साधक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना करें, तो वांछित फल की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है.
भय से छुटकारा पाने के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है.
रोगों से मुक्ति के लिए 11000 मंत्रों का जप किया जाता है.
महामृत्युंजय मंत्र का जप ऐसे किया जाता है
रोज रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करने से अकाल मृत्यु (असमय मौत) का डर दूर होता है। साथ ही कुंडली के दूसरे बुरे रोग भी शांत होते हैं, इसके अलावा पांच तरह के सुख भी इस मंत्र के जाप से मिलते हैं।